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2 नवंबर 1917 को जन्मे बिरदीचंद गोठी के पिता का नाम श्री मिश्रीलाल गोठी तथा माता का नाम श्रीमती केशरबाई गोठी था। जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले श्री गोठी का स्वतंत्रता संग्राम में बड़ा योगदान रहा है। उनके काका श्री दीपचन्द गोठी भी स्वतंत्रता सेनानी थे जिनके कारण परिवार में राष्ट्रीय भावना बहुत तीव्र थी। लगभग 30-35 वर्षों तक कॉग्रेस का कार्यालय गोठी परिवार के मकान में रहा। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के लिए दिल्ली जाने वाले सत्याग्रहियों के स्वागत और विश्राम की व्यवस्था में बिरदीचंद गोठी ने योगदान दिया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान समूचा देश गांधीजी के आवाहन पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था। बैतूल में भी युवाओं द्वारा बल्लभाऊ धर्माधिकारी और भवानी प्रसाद मिश्र के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में रैली निकाली गई थी। रैली कलेक्ट्रेट कोर्ट पर झण्डा फहराने के लिए निकाली गई थी। जिला प्रशासन द्वारा रैली को बीच में ही रोककर इसमें शामिल लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इनमें बिरदीचंद गोठी भी शामिल थे। आंदोलन की तीव्रता के कारण जेल में कैदियों की संख्या बहुत बढ़ गई थी। अतः श्री गोठी सहित कई अन्य लोगों को केन्द्रीय जेल नागपुर भेज दिया गया। वे नागपुर जेल में साढ़े बारह महीने बी-क्लास राजनैतिक कैदी के रूप में रहे तथा 20 सितंबर 1943 को जेल से रिहा हुए। वे गांधीजी की विचारधारा से अत्यंत प्रभावित थे तथा जेल से रिहा होने के पश्चात भी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहें। आजादी के पश्चात भी उन्होंने अपना जीवन समाज कल्याण को समर्पित कर दिया। वे विनोबा भावे की विचारधारा से भी प्रभावित थे तथा उन्होंने भूदान आंदोलन में भी योगदान दिया। श्री गोठी ने 104 वर्ष की दीर्घायु प्राप्त की तथा 21 अगस्त 2021 को उनका निधन हुआ।